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Post Date: 07/09/2020
About Us: On the new moon day of Kartik month, there is the law of Diwali Pujan (Mahalakshmi Puja). Before Diwali comes the festival of Karva Chauth, Gautsav, Dhanteras, Narak Chaturdashi, Chhoti Diwali and then Diwali. A day after Diwali, Govardhan Puja, Annakoot Festival, Bhai Dooj and Vishwakarma Puja are performed. The biggest Diwali festival of Hindus is celebrated for five days all over the world. Let us know when Karva Chauth is, when is Gautsava, when is Dhanteras, when is Narak Chaturdashi, when is Chhoti Diwali and when is Diwali, when is Govardhan Puja, when is Annakoot festival, when is Bhai Dooj and when is Vishwakarma Puja.
Diwali Festival Celebrations 2020 |
दिवाली 14 नवंबर को है। |
दीवाली की विस्तृत जानकारी |
भारत में अधिकांश स्थानों पर तीसरे दिन होने वाली मुख्य घटना के साथ, दिवाली उत्सव वास्तव में पाँच दिनों तक चलता है। यह भगवान राम के वनवास के बाद अयोध्या में अपने राज्य में लौटने और दशहरा पर राक्षस राजा रावण से अपनी पत्नी को बचाने के साथ जुड़ा हुआ है। हालांकि, दक्षिण भारत में, त्योहार को नरकासुर की हार के रूप में मनाया जाता है। यह एक दिन का उत्सव है, जिसे दीपावली के रूप में जाना जाता है, जो आमतौर पर मुख्य दिवाली तिथि से एक दिन पहले पड़ता है लेकिन कभी-कभी उसी दिन (जब चंद्र दिन ओवरलैप होता है) होता है। त्योहार केरल में नहीं मनाया जाता है। सौभाग्य और समृद्धि की देवी, देवी लक्ष्मी, दीवाली के दौरान पूजा की जाने वाली प्राथमिक देवता है। प्रत्येक दिन का एक विशेष महत्व इस प्रकार है। |
पहले दिन (12 नवंबर, 2020) |
धनतेरस का महत्व |
धनतेरस को धनत्रयोदशी धन्वंतरि त्रियोदशी या धन्वंतरि जयंती भी कहा जाता है. मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए. कहते हैं कि चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था. भगवान धनवंतरी के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. भगवान धन्वंतरि के जन्मदिन को भारत सरकार का आयुर्वेद मंत्रालय 'राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस' के नाम से मनाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजन करने से घर धन-धान्य से पूर्ण हो जाता है. इसी दिन यथाशक्ति खरीददारी और लक्ष्मी गणेश की नई प्रतिमा को घर लाना भी शुभ माना जाता है. कहते हैं कि इस दिन जिस भी चीज की खरीददारी की जाएगी उसमें 13 गुणा वृद्धि होगी. इस दिन यम पूजा का विधान भी है. मान्यता है कि धनतेरस के दिन संध्या काल में घर के द्वार पर दक्षिण दिशा में दीपक जलाने से अकाल मृत्यु का योग टल जाता है. |
धनतेरस की पूजा विधि |
धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि, मां लक्ष्मी, भगवान कुबेर और यमराज की पूजा का विधान है. - धनतेरस के दिन आरोग्य के देवता और आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन धन्वंतरि की पूजा करने से आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त होती है. इस दिन भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा को धूप और दीपक दिखाएं. साथ ही फूल अर्पित कर सच्चे मन से पूजा करें. - धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा भी की जाती है. इस दिन संध्या के समय घर के मुख्य दरवाजे के दोनों ओर अनाज के ढेर पर मिट्टी का बड़ा दीपक रखकर उसे जलाएं. दीपक का मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए. दीपक जलाते समय इस मंत्र का जाप करें: मृत्युना दंडपाशाभ्यां कालेन श्याम्या सह| त्रयोदश्यां दीप दानात सूर्यज प्रीयतां मम || धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है. मान्यता है कि उनकी पूजा करने से व्यक्ति को जीवन के हर भौतिक सुख की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान कुबेर की प्रतिमा या फोटो धूप-दीपक दिखाकर पुष्प अर्पित करें. फिर दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर सच्चे मन से इस मंत्र का उच्चारण करें: |
धनतेरस के दिन क्यों खरीदें और क्या नहीं |
धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. इस दिन मां लक्ष्मी के छोटे-छोट पद चिन्हों को पूरे घर में स्थापित करना शुभ माना जाता है. |
धनतेरस के दिन कैसे करें मां लक्ष्मी की पूजा |
धनतेरस के दिन प्रदोष काल में मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए. इस दिन मां लक्ष्मी के साथ महालक्ष्मी यंत्र की पूजा भी की जाती है. धनतेरस पर इस तरह करें मां लक्ष्मी की पूजा
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलिए प्रसीद प्रसीद | ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मिये नम: ||
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धनतेरस, या धनत्रयोदशी के रूप में जाना जाता है। "धन" का अर्थ है धन और "तेरस" हिंदू कैलेंडर पर एक चंद्र पखवाड़े के 13 वें दिन को संदर्भित करता है। कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि, चिकित्सा के देवता और भगवान विष्णु के अवतार हैं, कहा जाता है कि इस दिन मानव जाति के लिए आयुर्वेद और अमरता का अमृत लाया गया था। केरल और तमिलनाडु में धन्वंतरी और आयुर्वेद को समर्पित कई मंदिर हैं। किंवदंती यह भी है कि देवी लक्ष्मी का जन्म इस दिन समुद्र मंथन से हुआ था, और उनका एक विशेष पूजा (अनुष्ठान) के साथ स्वागत किया जाता है। सोने और अन्य धातुओं (रसोई के बर्तन सहित) को पारंपरिक रूप से खरीदा जाता है। लोग कार्ड और जुआ खेलने के लिए भी इकट्ठा होते हैं, क्योंकि यह शुभ माना जाता है और साल भर में धन लाएगा। मां लक्ष्मी की आरतीॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता । तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥ उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम ही जग माता । सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ ॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥ दुर्गा रूप निरंजनि, सुख-संपत्ति दाता । जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥ ॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥ तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता । कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी, भव निधि की त्राता ॥ ॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥ जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद्गुण आता । सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता ॥ ॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥ तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता । खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ ॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥ शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता । रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॥ ॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥ महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता । उँर आंनद समाता, पाप उतर जाता ॥ ॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥ ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता । तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥ |
धनतेरस पर भूलकर भी ना करें ये 10 गलतियां |
धनतेरस के दिन सौभाग्य और सुख की वृद्धि के लिए मां लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है. आज के दिन शाम को परिवार की मंगलकामना के लिए यम नाम का दीपक जलाया जाता है. लक्ष्मी-कुबेर की पूजा के दौरान कई सावधानियां बरती जाती हैं. आइए जानते हैं इस दिन किन नियमों का पालन करना चाहिए. घर में न कूड़ा-कबाड़ न रखेंवैसे दिवाली से पहले लोग घर के कोने-कोने की सफाई करते हैं लेकिन अगर आपके घर में धनतेरस के दिन तक कूड़ा-कबाड़ या खराब सामान पड़े हुए हैं तो आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा नहीं आएगी. घर में कोई भी पुराना या बेकार सामान पड़ा हो तो उसे आज ही फेंक दें.मुख्य द्वार पर न हो गंदगीघर के मुख्य द्वार या मुख्य कक्ष के सामने तो बेकार वस्तुएं बिल्कुल भी ना रखें. मुख्य द्वार को नए अवसरों से जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि घर के मुख्य द्वार के जरिए घर में लक्ष्मी का आगमन होता है इसलिए ये स्थान हमेशा साफ-सुथरा रहना चाहिए. सिर्फ कुबेर की ही पूजा न करेंअगर आप धनतेरस पर सिर्फ कुबेर की पूजा करने वाले हैं तो ये गलती ना करें. कुबेर के साथ माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की भी उपासना जरूर करें वरना पूरे साल बीमार रहेंगे. शीशे के बर्तन न खरीदेंऐसी मान्यता है कि इस दिन शीशे के बर्तन नहीं खरीदने चाहिए. धनतेरस के दिन सोने चांदी की कोई चीज या नए बर्तन खरीदने को अत्यंत शुभ माना जाता है. खरीदारी में न बिताएं पूरा दिनज्यादातर लोगों को यही पता है कि धनतेरस के दिन सिर्फ नयी वस्तुओं की खरीदारी ही की जाती है. जबकि इस दिन खरीदारी के अलावा दीपक भी जलाए जाते हैं. इस दिन घर प्रवेश द्वार पर दीपक जरूर जलाएं इससे परिवार की लौ हमेशा बनी रहती है. दिन के समय न सोएंधनतेरस के दिन दोपहर या शाम के समय सोएं नहीं, ऐसा करने से घर में दरिद्रता आती है. आज चाहें तो दोपहर में थोड़ा सा आराम कर सकते हैं. इस दिन संभव हो सके तो रात्रि जागरण करें. घर में न करें कलहधनतेरस के दिन घर में बिल्कुल कलह ना करें. मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो घर की स्त्रियों का सम्मान करें. आज के दिन लड़ाई-झगड़े से दूर ही रहें किसी को उधार न देंधनतेरस के दिन किसी को भी उधार देने से बचें. इस दिन अपने घर से लक्ष्मी का प्रवाह बाहर ना होने दें. लोहा न खरीदेंधनतेरस के दिन लोहे का कोई भी सामान न खरीदें. इस दिन लोहा खरीदना शुभ नहीं माना जाता है. माना जाता है कि इस दिन लोहा खरीदने से घर में दरिद्रता आती है. नकली मूर्तियों की पूजा ना करेंइस दिन नकली मूर्तियों की पूजा ना करें. सोने, चांदी या मिट्टी की बनी हुई मां लक्ष्मी की मूर्ति की पूजा करें. स्वास्तिक और ऊं जैसे प्रतीकों को कुमकुम, हल्दी या किसी शुभ चीज से बनाएं. नकली प्रतीकों को घर में ना लाएं. |
धनतेरस पर क्या खरीदने से आएगी खुशहाली |
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दूसरे दिन (13 नवंबर, 2020)नरका चतुर्दशी या छोटी दिवाली (छोटी दिवाली) के रूप में जाना जाता है। "नरका" का अर्थ है नरक और "चतुर्दशी" का अर्थ है हिंदू कैलेंडर पर एक चंद्र पखवाड़े का 14 वां दिन। माना जाता है कि देवी काली और भगवान कृष्ण ने इस दिन राक्षस नरकासुर का विनाश किया था। गोवा में जश्न में दानवों के पुतले जलाए जाते हैं। 2020 में, नरका चतुर्दशी अमावस्या के साथ समाप्त होती है और उसी दिन, 14 नवंबर को पड़ता है। |
इस दिन, पश्चिम बंगाल से भक्त देवी काली की प्रार्थना करते हैं। इसके अलावा, लोग पोहा की तरह कई व्यंजनों को भी तैयार करते हैं और इसे इसलिए भी बनाया जाता है क्योंकि यह फसल का मौसम है। इसके अलावा एक और अनुष्ठान जो कई लोगों द्वारा किया जाता है, वह है सिर धोना और महिलाएं काजल लगाना क्योंकि उनका मानना है कि इससे उन्हें बुराई या बुरार नज़र से दूर रखा जाएगा जैसा कि हिंदी में कहा गया है। और जो लोग पंडित और पुजारी पृष्ठभूमि से आते हैं वे आज अपने सभी मंत्र सीखते हैं। कुछ लोग अपने पूर्वजों को नरका चतुर्दशी पर भोजन भी कराते हैं। |
सत्यभामा ने कृष्ण से संपर्क किया और उनसे नरकासुर का अंत करने का अनुरोध किया। जिस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, उसे नरका चतुर्दशी या चोति दिवाली के रूप में पूजा जाता है। किंवदंतियों के अनुसार, नरकासुर की मां भूदेवी ने घोषणा की थी कि उनके बेटे की मृत्यु शोक का दिन नहीं होनी चाहिए बल्कि जश्न मनाने और खुशी मनाने का अवसर होना चाहिए। इसलिए, दिन को दीपावली के रूप में मनाया जाता है, जो मुख्य दीपावली की रात से पहले मनाया जाता है। |
छोटी दिवाली 2019 पूजा मंत्र & विधि |
किंवदंतियों के अनुसार, यदि आप इस दिन यमराज की पूजा करते हैं, तो उनके 14 नाम लेकर उन्हें नमन करते हैं, यह आपको मृत्यु के बाद 'नरक' में जाने से बचा सकता है। Chapter मदन पारिजात ’की पवित्र पुस्तक में, पृष्ठ 256 पर, अध्याय विद्या मनु, मृत्यु के देवता के नाम निम्नलिखित हैं- यमराज यमाय धर्मराजाय मृत्यवे चांतकाय च, वैवस्वताय कालाय सर्वभूतक्षयाय च। औदुम्बराय दध्नाय नीलाय परमेष्ठिने, व्रकोदराय चित्राय चित्रगुप्ताय वै नम:।। |
क्यों कहा जाता है छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी |
हिंदू पंचांग के अनुसार दिवाली का त्योहार इस साल 27 अक्टूबर दिन रविवार को पड़ रहा है। लेकिन उससे एक दिन पहले छोटी दिवाली का पर्व मनाया जाता है। बता दें कि इस दिन को नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी और काली चौदस के नाम से जाना जाता है। इस दिन सभी लोग अपने घरों को सजाना शुरू कर देते हैं और साथ ही घर के आस-पास दीए भी जलाते हैं। लेकिन क्या आप में से किसी को पता है कि छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी क्यों कहा जाता है। अगर नहीं तो चलिए इससे जुड़ी कथा के बारे में आज हम आपको बताते हैं। भागवत पुराण में बताया गया है कि भौमासुर भूमि माता का पुत्र था। विष्णु ने वराह अवतार धारण कर भूमि देवी को समुद्र से निकाला था। इसके बाद भूमि देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया। पिता एक देवीशक्ति और माता पुण्यात्मा होने पर भी पर भौमासुर क्रूर निकला। वह पशुओं से भी ज्यादा क्रूर और अधमी था। उसकी करतूतों के कारण ही उसे नरकासुर कहा जाने लगा। एक दिन स्वर्गलोक के राजा देवराज इंद्र ने आकर उनसे प्रार्थना की, हे कृष्ण! प्रागज्योतिषपुर के दैत्यराज भौमासुर के अत्याचार से देवतागण त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। क्रूर भौमासुर ने वरुण का छत्र, अदिति के कुण्डल और देवताओं की मणि छीन ली है और वह त्रिलोक विजयी हो गया है। इंद्र ने कहा, भौमासुर ने पृथ्वी के कई राजाओं और आमजनों की अति सुन्दरी कन्याओं का हरण कर उन्हें क्रूर भौमासुर ने वरुण का छत्र, अदिति के कुण्डल और देवताओं की मणि छीन ली है और वह त्रिलोक विजयी हो गया है। इंद्र ने कहा, भौमासुर ने पृथ्वी के कई राजाओं और आमजनों की अति सुन्दरी कन्याओं का हरण कर उन्हें अपने यहां बंदीगृह में डाल रखा है। कृपया आप हमें बचाइए प्रभु। एक दिन स्वर्गलोक के राजा देवराज इंद्र ने आकर उनसे प्रार्थना की, 'हे कृष्ण! प्रागज्योतिषपुर के दैत्यराज भौमासुर के अत्याचार से देवतागण त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। क्रूर भौमासुर ने वरुण का छत्र, अदिति के कुण्डल और देवताओं की मणि छीन ली है और वह त्रिलोक विजयी हो गया है। इंद्र ने कहा, भौमासुर ने पृथ्वी के कई राजाओं और आमजनों की अति सुन्दरी कन्याओं का हरण कर उन्हें अपने यहां बंदीगृह में डाल रखा है। कृपया आप हमें बचाइए प्रभु। इंद्र की प्रार्थना स्वीकार कर के श्रीकृष्ण अपनी प्रिय पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गरुड़ पर सवार हो प्रागज्योतिषपुर पहुंचे। भौमासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और घोर युद्ध के बाद अंत में कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से उसका वध कर डाला। इस प्रकार भौमासुर को मारकर श्रीकृष्ण ने उसके पुत्र भगदत्त को अभयदान देकर उसे प्रागज्योतिष का राजा बनाया। भौमासुर के द्वारा हरण कर लाई गईं 16,100 कन्याओं को श्रीकृष्ण ने मुक्त कर दिया। ये सभी अपहृत नारियां थीं या फिर भय के कारण उपहार में दी गई थीं और किसी और माध्यम से उस कारागार में लाई गई थीं। वे सभी भौमासुर के द्वारा पीड़ित थीं, दुखी थीं, अपमानित, लांछित और कलंकित थीं। नारियों को कोई भी अपनाने को तैयार नहीं था, तब अंत में श्रीकृष्ण ने सभी को आश्रय दिया। ऐसी स्थिति में उन सभी कन्याओं ने श्रीकृष्ण को ही अपना सबकुछ मानते हुए उन्हें पति रूप में स्वीकार किया, लेकिन श्रीकृष्ण उन्हें इस तरह नहीं मानते थे। उन सभी को श्रीकृष्ण अपने साथ द्वारिकापुरी ले आए। वहां वे सभी कन्याएं स्वतंत्रपूर्वक अपनी इच्छानुसार सम्मानपूर्वक द्वारका में रहती थी, महल में नहीं। श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर किया था। इसी दिन की याद में दीपावली के ठीक एक दिन पूर्व नरक चतुर्दशी मनाई जाने लगी। मान्यता है कि नरकासुर की मृत्यु होने से उस दिन शुभ आत्माओं को मुक्ति मिली थी। नरक चौदस के दिन प्रातःकाल में सूर्योदय से पूर्व उबटन लगाकर नीम, चिचड़ी जैसे कड़ुवे पत्ते डाले गए जल से स्नान का अत्यधिक महत्व है। इस दिन सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने घरों के दरवाजों पर चौदह दीये जलाकर दक्षिण दिशा में उनका मुख करके रखते हैं तथा पूजा-पाठ करते हैं। |
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चौथे दिन (15 नवंबर, 2020)पूरे भारत में विभिन्न अर्थ हैं। उत्तर भारत में, गोवर्धन पूजा उस दिन के रूप में मनाई जाती है जब भगवान कृष्ण ने गरज और वर्षा के देवता इंद्र को हराया था। गुजरात में, इसे नए साल की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में, दानव राजा बलि पर भगवान विष्णु की जीत को बाली प्रतिपदा या बाली पद्यमी के रूप में मनाया जाता है। |
गोवर्धन पूजा का क्या है |
दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट या गोवर्धन पूजा की जाती है. यह प्रकृति की पूजा है जिसका आरम्भ श्री कृष्ण ने किया था. इस दिन प्रकृति के आधार, पर्वत के रूप में गोवर्धन की पूजा की जाती है और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है. यह पूजा ब्रज से आरम्भ हुई थी और धीरे धीरे पूरे भारत वर्ष में प्रचलित हुई |
अन्नकूट की पूजा कैसे होती है |
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गोवर्धन पूजा किस प्रकार करें |
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गोवर्धन पूजा के दो विशेष प्रयोग |
संतान प्राप्ति के लिए उपाय
आर्थिक सम्पन्नता और समृद्धि के लिए उपाय
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पांचवें दिन (16 नवंबर, 2020)भाई दूज के नाम से जाना जाता है। यह बहनों को मनाने के लिए समर्पित है, इसी तरह से रक्षा बंधन भाइयों को समर्पित है। भाइयों और बहनों को एक साथ मिलता है और उनके बीच के बंधन को सम्मान देने के लिए, भोजन साझा करते हैं। भैया दूज पर्व को यम द्वितीया भी कहा जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं। साथ ही भाई अपनी बहन को कुछ उपहार या दक्षिणा देता है। भैया दूज का उत्सव पूरे भारत भर में धूमधाम से मनाया जाता है। हालांकि इस पर्व को मनाने की विधि हर जगह एक जैसी नहीं है। उत्तर भारत में जहां यह चलन है कि इस दिन बहनें भाई को अक्षत व तिलक लगाकर नारियल देती हैं वहीं पूर्वी भारत में बहनें शंखनाद के बाद भाई को तिलक लगाती हैं और भेंट स्वरूप कुछ उपहार देती हैं। इस तरह करें भाई का पूजनइस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती हैं उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए कहती हैं जैसे "गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े"। मान्यता है कि इस दिन अगर बड़े से बड़ा पशु काट भी ले तो यमराज के दूत भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। इस दिन शाम के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुखी दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। माना जाता है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा। |
पर्व से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं |
पौराणिक मान्यता है कि यदि संभव हो तो भैया दूज के दिन भाई बहन को अवश्य ही साथ यमुना स्नान करना चाहिए। इसके बाद भाई को बहन के यहां तिलक करवा कर ही भोजन करना चाहिए। यदि किसी कारणवश भाई बहन के यहां उपस्थित न हो सके, तो बहन स्वयं चलकर भाई के यहां पहुंचे। बहन पकवान−मिष्ठान का भोजन भाई को तिलक करने के बाद कराये। बहन को चाहिए कि वह भाई को तिलक लगाने के बाद ही भोजन करे। यदि बहन सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ भाई के लिए प्रार्थना करे तो वह जरूर फलीभूत होती है। |
पर्व से जुड़ी कथा |
भगवान सूर्यदेव की पत्नी का नाम छाया है। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती हैं। वह उनसे बराबर निवेदन करतीं कि वह उनके घर आकर भोजन करें, लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात टाल जाते थे। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन करने के लिए बुलाया। बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। भाई को देखते ही यमुना ने हर्ष−विभोर होकर भाई का स्वागत सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा। बहन ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाये, उसे आपका भय न रहे। यमराज तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमपुरी चले गये। ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। |
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